नमस्ते दोस्तों स्वागत है हमारे ब्लॉग पर आज हम आपके लिए भगवान बुद्ध से सम्बन्धित एक कविता लेकर आए हैं। दोस्तो करुणा और मैत्री का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की विचार वर्तमान समय में बहुत ही जरूरी है। क्योंकि वर्तमान समय में चारों तरफ अंधकार रूपी अज्ञानता फैली हुई है। ऐसे समय में बुद्ध की इस समाज को बहुत आवश्यकता है। दोस्तो इस कविता के माध्यम से हम भगवान बुद्ध को एक बार और धरती पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। जिससे पूरे संसार का अज्ञान रूपी अंधकार खत्म किया जा सके।
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हे मानवता के प्रखर पुंज बुद्ध
फिर कब आओगे!
फिर से धरती धड़क रही है,
करुणा की नीव दरक रही है,
सिसक रही है धरती की आभा,
भटक रहा है जग का मन,
आहट प्रकृति का मन व्याकुल हो रहा है,
अपने ही वंशजों की करतूत पर।
आया तो था अंगुलिमाल भी,
क्रूरता का महारौद्र रूप बन।
झुक गया नतमस्तक हो तुम्हारे प्रभाकुंज में,
पर क्या उसके वंशज, इतिहास दोहराएंगे?
तुम्हारे ज्ञान भूमि का बोधिवृक्ष,
पनाह दे रहा था बामियान से भागे पक्षियों को।
व्याकुल मन से पछतावे में रो रहे हैं,
सरहद पार कर सुरक्षित होने के भ्रम पर।
हूक भर-भर बामियान के ये सभ्यता पक्षी,
सिसकते मन से सोच रहे,
क्यों भरी थी उड़ान वंशजों के खातिर।
बुध्द भूमि पर रक्त ढूंढते इन दानवों का,
मानवता से नाता खत्म हो गया है।
बेबस समाज सन्न हो गया है।
पंचशील पढ़ा हुआ अखबार हो रहा है।
राजनीति की कोख अब अशोक नहीं जनती,
नालंदा, तक्षशिला की नींव अब नहीं पड़ती,
धम्म संघ की भीड़ भी नहीं उमड़ती,
फिर अज्ञानता का घटतोप अंधेरा है,
हे मानवता के प्रखर बुद्ध
फिर कब आओगे!
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