नमस्ते दोस्तों स्वागत है हमारे ब्लॉग पर दोस्तो आज हम आपके लिए एक लघु धार्मिक कहानी लेकर आए हैं। दोस्तो धार्मिक कहानी सभी को पढ़ना चाहिए। क्योंकि इसमें नैतिकता और ज्ञान रहता है। इसलिए हम सभी को अधिक से अधिक नैतिक कहानी पढ़ना चाहिए। आज हम आपके लिए इसी से सम्बन्धी एक प्रेरणा दायक कहानी लेकर आए हैं।
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भक्त पुण्डरीक भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। भगवान की पूजा-अर्चना के बाद वह अपने वृद्ध माता-पिता की स्वयं अपने हाथों से सेवा करते थे। उन्हें स्नान कराते, दूध पिलाते, भोजन कराते तथा बाद में उनके बचे हुए भोजन को ग्रहण करते। शेष समय विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना में बिताते।
एक दिन भगवान विष्णु अपने इस भक्त की निष्काम साधना से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देने उनके घर पधारे जिस समय वे घर में प्रवेश किए। पुण्डरीक माता पिता की सेवा में लगे थे। वह माता-पिता के चरण दबा रहे थे। भगवान को देेख ले के बाद भी वह पिता की सेवा में लगे रहे। उन्होंने भगवान से कहा, प्रभु इस समय तो मैं पिता की सेवा में व्यस्त हूं, अपने इस कार्य को समाप्त करने के बाद ही मैं आपको प्रणाम करने के लिए खड़ा हो पाऊंगा।
भगवान विष्णु अपने इस मातृ-पितृ सेवी आदर्श भक्त का मुंह देखते रह गये। वह खड़े-खड़े पुण्डरीक की सेवा के दृश्य को मंत्र मुग्ध होकर देख रहे थे।
पुण्डरीक ने सोचा कि भगवान खड़े-खड़े थक गए होंगे। तब उन्होंने एक हाथ से चरण दबाते-दबाते दूसरे हाथ से पास रखें ईट को फेंका और कहां, भगवन, आप इस पर विश्राम करेें। मैं पिता जी के सोते ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा। भगवान विष्णु हमेशा के लिए अपने इस अनूठे भक्त की आज्ञा शिरोधार्य कर उसी ईट पर मूर्ति के रूप में विराजमान हो गए।
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